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मेरा दादू-भाग 4

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हिमालय का सुंदर दृश्य नमस्कार मित्रो, आज मैं फिर अपनी तिकड़ी सहित एक नयी शरारत के साथ आपके सामने उपस्थित हुई हूँ. जैसा कि आप जानते ही हैं ये मेरे बचपन की कुछ यादें हैं जिन्हें  मैं आप सब के साथ  शेयर कर रही हूँ.  और यकीन जानिये जितना मैं पुरानी चीज़े लिख रही हूँ, जितना मुझे पुराना सब कुछ याद आ रहा हैं वो मुझे बहुत खुशी दे रहा हैं. सब वाकये, सब घटनाएं याद आ रही हैं और मुझे मेरे बचपन से फिर से जोडती चली जा रही हैं. लगता हैं एक फिल्म सी चल रही हैं सामने और अपना खो गया बचपन मैं फिर से जी रही हूँ. सच में बहुत अनोखा हैं ये अहसास, हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाये, कही भी क्यों न पहुच जाये पर एक लालसा आज भी सबके मन में जरुर होती हैं की काश वो बचपन फिर से आ जाये, हम उस वक्त में पहुच जाये. सुदर्शन फाकिर जी की लिखी एक गजल जो   जगजीत सिंह जी ने गायी थी कितनी सही लगती हैं न ऐसे वक्त में , बिलकुल सटीक और भावपूर्ण .             ये दौलत भी ले लो , ये शोहरत भी ले लो  भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी          मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन            वो कागज़ की कश्ती , वो बार