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अप्रैल, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवनदाई जल –अब तो बचाओं

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जीवनदाई जल – अब तो बचाओं   पानी - जीवन का आधार , पानी के कारण ही धरती पर जीवन संभव हुआ हैं यदि यह पानी न होता तो शायद   धरती पर जीवन भी ना होता. अमूल्य कितना   जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती, जल ही जीवन हैं बार बार सुनते हैं, मानते भी हैं पर समझना नही चाहते.   लोग जल संरक्षण   में नही बल्कि   धन या धातु संरक्षण (सोना, चांदी ,हीरे,मोती) में लगे हुए   हैं . क्या करेंगें   इन सबका, जब धरती पर पानी ही नही बचेगा. पानी नही तो जीवन नही और जीवन ही नही हो तो ये सब भी तो ब्यर्थ ही हुआ ना.   क्या कोई और विकल्प हैं जल का हमारे पास? नही ना, तो फिर क्यों नही जाग जाते अब भी.जिस देश में कई नदिया बहती हो उस देश का ये हाल हैं कि पीने को साफ़, स्वच्छ और शुद्ध पानी नसीब नही हैं.   धरती पर उपलब्ध पूरे पानी में से केवल 1% या फिर उससे भी थोडा कम का ही प्रयोग हम कर सकते हैं . कितनी नदिया, तालाब,पोखर हुआ करते थे पहले, पानी से लबालब भरे हुए. हमारे पूर्वज जिन्हें हम बड़े गर्व से ओल्ड जेनरेशन या पुरानी पीढ़ी के लोग कहते हैं हमसे कई गुना ज्यादा समझदार थे, पानी की एक एक बूंद का महत्त्व जानते थे प

मेरा दादू पार्ट-1

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मेरा दादू भाग - 1 मेरा दादू- मेरा सबसे अच्छा दोस्त , मार्गदर्शक , आलोचक और मेरा सबसे बड़ा   कम्पटीटटर भी , जी हां   कम्पटीटटर भी वो ऐसे की अब मम्मी पापा किसे ज्यादा प्यार करते हैं ये वाला पन्गा तो हर घर   में हर भाई बहन के बीच जरूर होता हैं तो हो गया न कम्पटीटर. अब   ऐसे में मम्मी पापा आपको ही ज्यादा प्यार करे ये तो जरुरी   हैं   ही जरुरी ये भी हैं की ये कम्पटीटर भी मतलब   की आपका भाई भी केवल आपको ही सबसे ज्यादा प्यार करें और अगर नहीं   भी करता हो तो कहे कि सबसे ज्यादा प्यार तो मैं बस   तुझे    ही करता हूँ हा हाहा ! ये हैं मेरा बचपन ! मैं दो भाइयो की एकलौती   बहन हूँ , इकलौती बहन होना दो भाइयो के बीच में कभी कभी बड़ा फायदेमंद होता हैं और मैं तो एक साथ छोटी बहन भी थी तो बड़ी दीदी भी क्योकि मेरा एक भाई मुझसे छोटा हैं   पर आज बात करेंगें छोटी बहन के बारे में दीदी को आज विराम देते हैं बहुत कठिन जॉब हैं न दीदी होना भी तो , तो आज छोटी बहन को सामने लाते हैं. मैं अपने दादू से ढाई तीन साल छोटी हूँ पर उससे हमेशा ऐसे लड़ती हूँ जैसे मैं उससे बड़ी हूँ. बचपन   में भी   अपनी बातें जबरदस्ती मनवाना , न

” मेरा दादू पार्ट-3 “

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हैलो दोस्तों आज मैं   फिर आपके सामने हाज़िर हूँ” मेरा दादू पार्ट-3 “लेकर.   जैसा कि आपको पिछले भाग में मैंने बताया था   की अब हमारी तिकड़ी हो गई थी मेरा छोटा भाई मनु भी अब हमारे ग्रुप में आ गया था तो शैतानी थोड़ी सी बढ़ गई थी, वेसे ये थोड़ी सी, मुझे या मेरे दोनों भाइयो को ही लगती थी मम्मी पापा को तो हम मासूम हमेशा शैतान और दुष्ट ही लगते थे जिसमे बिलकुल भी सच्चाई नही थी.  हाँ तो मैं बता रही थी की तिकड़ी बन गई थी अपनी.और तिकड़ी के मेम्बेर्स थे बिन पैंदे के लौटे, कभी मैं दादू की साइड तो कभी दादू मनु की साइड तो कभी मनु से ही या दादू से ही आपस में पंगा. आपस में ही कभी दे दना दन तो कभी प्यार. सच्ची बहुत प्यारे दिन थे वो जब रुठते भी खुद ही थे और मानते भी खुद ही थे. एक दुसरे से लड़ना , पीटना, मानना, मुस्कराना और रात को सबका एक साथ बैठकर कहानी सुनना.  कहानी का किस्सा भी मजेदार था. रोज रात को मनु और मैं दादू के सामने बैठ जाते और वो कहानी सुनाता – एक था भगवा लाटा,,,,,,, अब ये भगवा लाटा एक ही दिन नही होता था बल्कि रोज होता था. रोज हमको यही कहानी सुनाता और फिर हम (मनु और मैं) मिलकर दादू को पीटते,