मेरा दादू पार्ट-1
मेरा दादू भाग -1
मेरा दादू-
मेरा सबसे अच्छा दोस्त, मार्गदर्शक, आलोचक और मेरा सबसे बड़ा कम्पटीटटर भी, जी हां कम्पटीटटर भी वो ऐसे की अब मम्मी पापा किसे
ज्यादा प्यार करते हैं ये वाला पन्गा तो हर घर में हर भाई बहन के बीच जरूर होता हैं तो हो
गया न कम्पटीटर. अब ऐसे में मम्मी पापा आपको ही ज्यादा प्यार करे
ये तो जरुरी हैं
ही जरुरी ये
भी हैं की ये कम्पटीटर भी मतलब की आपका भाई भी केवल आपको ही सबसे ज्यादा
प्यार करें और अगर नहीं भी करता हो तो कहे कि सबसे ज्यादा प्यार तो
मैं बस तुझे ही करता हूँ हा हाहा ! ये हैं मेरा बचपन !
मैं दो भाइयो की एकलौती बहन हूँ, इकलौती बहन होना दो भाइयो के बीच में कभी कभी
बड़ा फायदेमंद होता हैं और मैं तो एक साथ छोटी बहन भी थी तो बड़ी दीदी भी क्योकि
मेरा एक भाई मुझसे छोटा हैं पर आज बात करेंगें छोटी बहन के बारे में दीदी
को आज विराम देते हैं बहुत कठिन जॉब हैं न दीदी होना भी तो, तो आज छोटी बहन को सामने लाते हैं. मैं अपने दादू से ढाई तीन साल छोटी हूँ पर
उससे हमेशा ऐसे लड़ती हूँ जैसे मैं उससे बड़ी हूँ. बचपन में भी अपनी बातें जबरदस्ती मनवाना, न मानने पर नाराज भी होना, कभी उसको अपनी सेविंग्स से पैसे भी देना और
उन पैसे पर ब्याज भी लगाना, जब कभी वो कोई गलती करे तो जाकर जल्दी मम्मी
को बताने जाना फिर उसका मिन्नत करना की चल रे मेरी शिकायत मत कर, और मेरा बिलकुल अकड़ जाना की नहीं पहले मेरी ये वाली बात मानो , कभी कभी उसको मम्मी पापा की पिटाई से भी बचाना
और बाद में
छुपकर खूब हसना भी , साथ में ही कई शरारते करना और पकडे जाने पर
अपना मासूम बन जाना की ये तो ददा ने कहा था कि ऐसा करते हैं. पढ़ाई करते समय एक दूसरे को देखना की कौन सो रहा हैं या पढ़ नहीं रहा हैं , किताबो के बीच में धुव, डोगा, नागराज भोकाल , अश्वराज , फाइटर टोडस , शक्ति , चम्पक, नंदन
आदि कॉमिक
बुक्स या पत्रिकाएं डाल कर पढ़ना आज जब मेरी शादी हो गई हैं सब बहुत याद आता हैं अब वो शरारते, वो रूठना-
मनाना, वो मस्तियाँ, वो कथा कहानिया कही नहीं हैं पर वो समय आज भी याद आता हैं तो चेहरे पर बड़ी सी
मुस्कान आ जाती हैं
ऐसी ही कुछ
शरारते मुझे आज याद आ रही हैं सोचा आपसे शेयर करू
वैसे किस्से
कई हैं पर आज केवल ये एक ही -
तब हम शायद
बहुत छोटे थे मैं ३-४ साल की और दा शायद ७-८ साल का, पापा को स्मोकिंग की आदत थी और वो बीड़ी पीते
थे तब तक हमने उनको अपने सामने पीते ज्यादा देखा नहीं था तो एक बार जब हमने उनको
स्मोक करते देखा तो लगा की ये तो बड़ी टेस्टी
चीज़ होगी तभी
तो पापा इसे पी रहे हैं तो बस नन्हे बच्चे लग गए जासूसी मैं की कब पाप घर से बाहर
जाते हैं अपनी बीड़ी माचिस छोड़कर और कब हम भी इसका स्वाद लें
पायेंगें जल्द ही मौका भी मिल गया,हमने पकड़ा
अपने स्वाद का सामान और घर से दूर नीचे खेतो की और झाड़ी में छुपकर हमने माचिस जलाई और बीड़ी सुलगा ली, जैसे ही दोनों ने बीड़ी मुँह में डाली हमने
जोर से श्वाश अंदर को खीची उसके बाद जो हम दोनों को खांसी आई तो आधे घंटे तक तो रुकी ही नहीं आंसुओ से पूरा चेहरा भर गया और गले में भी बड़ा अजीब सा लगा, दोनों ने बीड़ी माचिश वही फेंकी और घर जाकर कुल्ला किया . बड़ी देर बाद आराम आया,
लगा अरे ये तो
बड़ा ही गन्दा हैं पता नहीं पापा इसको क्यों पीते हैं अब कोतुहल की जगह डर ने ले लिया थे तय हुआ की किसी को कुछ नहीं बताया जायेगा
और आज के बाद इस बेकार चीज़ को भी बिलकुल नहीं खायेंगें
जो स्वाद में भी अच्छी नहीं और रुला अलग देती हैं जैसा की तय हुआ था कुछ समय तक तो
हमने घर पर किसी को बताया भी नहीं पर एक दिन दोनों भाई बहनो का झगड़ा हो गया और खुल
गई पोल पट्टी कि मम्मी मम्मी दद्दा ने बीड़ी पी अब दद्दा कौन सा कम उसने भी
कह दिया मम्मी इसने भी पी मेरे साथ. बस फिर क्या था दोनों को अच्छी खासी सुनाई गई, डांटा भी गया और शाम को हाज़िरी भी लग गई पापा के दरबार में. हम भी कम तो थे नहीं कह दिया पापा आप भी तो पीते हो हमको लगा अच्छी और
स्वादिष्ट होती होगी इसीलिए पी लिया, अब पापा एकदम चुप कुछ देर को और हम दोनों एक
दूसरे को घूर रहे थे, बस पापा ने उस दिन हमको कहा की वो भी आज से नहीं पीयेंगें और कहा की इसके कारन कितनी बीमारिया होती हैं ये अच्छा नहीं होता हैं सेहत के लिए . हम समझ गए आखिर को हम अच्छे बच्चे थे... हालांकि हमारे पापा बिलकुल अच्छे बच्चे नहीं थे
क्योकि वो स्मोक करना छोड़ नहीं पाए , हम जब भी उनको पीते देखते उनसे उठक बैठक
करवाते, और वो हमारे सामने बिलकुल गंभीर होकर उठक बैठक करते भी साथ कहते जाते बस ये
आखिरी बार हैं हालांकि वो आखिरी बार कभी आया नहीं वो ६-७ महीने छोड़ते और कभी फिर शुरू हो जाते,पर हम दोनों भाई बहन ने इस बात को गाठ बांध कर रखा और आज भी मेरा दा किसी भी प्रकार का स्मोक या नशा नहीं करता हैं और न ही वो चाय
पीता हैं ! तो इस तरह हमारे बचपन की एक छोटी सी शरारत से हमें अपने जीवन की एक बहुत बड़ी सीख मिली थी.
दोस्तों ये मेरी
और मेरे दा की भोली सी शरारत आपको कैसी लगी बताना जरूर, फिर मिलूंगी किसी
नई शरारत के साथ किसी पुरानी यादो के झूले में डोलती हुई सी.
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