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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भिटोली- मायके का आशीष

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भिटोली- मायके का आशीष   आज भिटोली आई हैं मेरी. उत्तराखंड में एक रिवाज़ हैं जिसमे चैत्र महीने में प्रत्येक परिवार अपनी शादीशुदा बेटी को पकवान, मिठाई, नए कपडे,   रुपये आदि देते हैं जिसे भिटोली कहा जाता हैं. जिनकी नयी नयी शादी हुई होती हैं उनकी पहली भिटोली चैत्र से पहले महीने फाल्गुन में ही दे दी जाती हैं. प्रत्येक शादीशुदा बेटी अपने माता-पिता या भाई बहन का इंतज़ार करती हैं कि कब उसके मायके वाले उससे मिलेंगें. इस महीने का उत्साह   उनमे देखते ही बनता हैं ये जानने की उत्सुकता थी की आखिर भिटोली   क्यों मनाया जाने लगा इसके पीछे क्या कारण था या इसके बारे में   कोई प्रचलित कहानी थी तो इस बारे में पता किया तब मेरे सामने एक कहानी आई. कहानी मेरे मामाजी ने मुझे बताई थी जब वो अपनी बहन को भिटोली देने आये थे. कहानी उनके अनुसार कुछ ऐसी   थी- पुराने समय में गोपीचंद नाम के एक राजा हुए. कई वर्ष राज करने के बाद वो सांसारिक जीवन से ऊब गये और उन्होंने संन्यास ले लिया. संन्यास लेने के बाद वो जगह जगह भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करने लगे. कहा जाता हैं की जो संन्यास लेता हैं तो अपने संन्यास लेन

अनचाही ................................

समाचार   पढ़ रही थी तो एक खबर पर ध्यान रूक गया खबर थी की   बेटे की चाहत थी , बेटी पैदा हुई तो नाम रख दिया ' अनचाही '. गुस्सा भी आया और सोच पर तरस भी. इसी बात को मैं अपने   पति से साझा   करते हुए बिचार विमर्श   कर रही थी. एक बात जो उन्होंने कही - लोग कहते हैं कि   बेटे वंश आगे बढ़ाते हैं   ये सही नहीं हैं क्या राम का , रावण का या कौरवो का , पांडवो   का वंशज कोई हैं आज ? इतने शासक    हुए   हिंदुस्तान   में , एक के बाद एक अगली पीढ़ी सिहासन में बैठी   उनके वंश क्या अमिट रहे. एक समय ऐसा जरूर आता हैं जब सब नष्ट   हो जाता हैं कुछ नहीं बचता वंश भी नहीं. तो ये बात तो सिरे से ही गलत हैं. दूसरी बात जो उन्होंने कही कि परिवार और घर की स्त्री यदि चाहे तो कोई भी बेटी गर्भ में ही मारी नहीं जायेभी, कोई भी बेटी अनचाही न कहलाई जाये. सही   कहा उन्होंने.   स्त्री जब तक स्वयं ही नहीं समझेगी की संतान तो संतान हैं क्या बेटा और क्या बेटी ,   जीवन पथ पर दोनों ने ही आगे बढ़ना हैं कोई भी हमेशा आपके साथ ही रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं हैं .   ये सोच तो स्त्री और पुरुष दोनों ने ही बदलनी होगी   कि   बेटा

मेरा दादू भाग- 2

हेलो दोस्तों आज फिर मैं आप सबके सामने हाज़िर हूँ अपनी और  अपने दादू  की शरारतो का पोटला लिए हुए, पर सबसे पहले आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग को समय देने और उसे पढ़कर अपने विचार देने का. आगे  भी  अपने अमूल्य सुझाओ से मुझे प्रेरित करते रहिएगा. तो अब वापस आते हैं अपनी शरारतो  पर जैसा की आपको बताया की मेरा दादू हमेशा मेरा दोस्त ,मार्गदर्शक और आलोचक रहा हैं, साथ ही वो मेरी हर शैतानी में मेरा पार्टनर भी रहा हैं  - बचपन बहुत भोला और मासूम सा होता जरूर हैं पर साथ ही बहुत शैतानी भरा भी कुछ यही हाल था हमारा भी बस हमारी शरारतो से कभी किसी का नुक्सान नहीं होता था और हर बार कुछ ऐसा होता की हम अपनी शरारतो से कुछ अच्छा  भी सीख ही जाते थे.   हमारे पापा फारेस्ट डिपार्टमेंट में जॉब करते थे तो इस कारण हम अधिकतर फारेस्ट कवाटर्स  में ही रहे हैं तब पापा की पोस्टिंग पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट  के दशाईथल नामक एक छोटी  सी  पर बहुत ही सुन्दर जगह पर  थी ये वो समय था जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही भाग था. यहां से मैंने बिद्यार्थी जीवन में कदम रखा.   इसी छोटी सी जगह पर मैंने पहली बार अपने ददा की उंगलिया

क्या हमारी आने वाली पीढ़ी ये सब देख पाएगी ?

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आज काफी समय बाद अपने एक परिचित से बात हुई, ये परिचित मेरे लिए मेरे बड़े भाई के  सामान हैं,आज से कुछ साल पहले जब मैं पर्यावरण विशेषज्ञ के रूप में एक प्रोजेक्ट से जुडी थी तब इनसे वहां मेरा परिचय हुआ और जब तक मैंने वहाँ काम किया वो सदैव मेरे साथ भ्रातातुल्य रहे. काफी विचारशील व्यक्ति हैं और जमीन से जुड़े हुए भी, अपनी थोड़ी सी खेती की जमीन पे शाक सब्जी आदि पसल उगाना, गाय पालन में बड़ा ही मन रमता हैं उनका. जब तक उनके साथ काम किया उनके खेतो से ताज़ी भिंडी, फूलगोभी या पत्तागोभी खूब खायी  हैं बातो बातो में उन्होंने कहा की आजकल तो बानर  या सुवर कुछ रहने ही नहीं दे रहे हैं इसलिए अब खेतो में ज्यादा कुछ नहीं लगा रहे हैं इस बार तो बंदरो ने हल्दी अदरख भी नहीं छोड़ा हैं खोद खोद कर सब निकाल लिए हैं मटर आदि का तो मत ही पूछो.   इस कारण आजकल और लोग भी खेती करने में कम ही रूचि रख रहे हैं बहुतो ने तो खेत बंजर भी छोड़ दिए हैं , पता नहीं आगे को भी क्या होगा.....उनकी चिंता तो मैं समझ ही रही थी  साथ ही एक नई चिंता भी मुझे घेर रही थी की ऐसा ही रहा और हर चीज़ इसी तरह छोड़ते रहे तो पता नहीं कुछ समय बाद उनका नामोनिशान य

मैं समय हूँ............

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वक़्त थमता नहीं वक़्त रुकता नहीं जरा सा रूक कर सुस्ताता भी नहीं. अनवरत, बिना थके आगे ही बढ़ता जाता हैं घडी भर को ही सही, ये घडी आराम तो कर लें. दौड़ती धड़कनो की तरह इन सुइयों को जरा विश्राम ही दे दें पर जो रूक जाये, जो थम जाये वो समय ही कहाँ हैं मैं समय हूँ ... मैं ही समय हूँ... रुकता भी नहीं और ठरता भी नहीं और न धीरे से या तेज़ी से चलता हूँ. मेरी तो बस अपनी ही एक गति हैं  यही तो पहचान भी हैं मेरी तुम भी कदमताल तो मिला लो, मेरी चाल  से अपनी चाल तो मिला लो वादा करता हूँ, फिर कभी साथ न छोडूंगा आगे बढूंगा खुद  भी और तुम्हे  भी ले बढूंगा तुम भी नित नए आसमान देखोगे, नयी जमीन नया संसार  देखोगे देखो जो रूक जाये न वो समय हैं और न ही मनुष्य. वो तो एक शरीर हैं निष्प्राण सा एक लाश ही समझो  जिसे बस  इंतज़ार हैं जलाने या दफ़नाने का ... इसलिए रूक मत, चल बस चलता जा अनवरत बिना थके बिना रुके.... बस चलता जा....

सुबह की ठंडी हवा

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ठंडी हवा के ये झौके, जो मन को खिला सा देते हैं. भरकर श्वास अपनी, इन  हवाओ को कभी तो महसूस करना. आँखों में उतरती सी ठंडक, सीने को सहलाती सी, दोनों हाथो को बांधकर सीने से लिपटती सी और कभी कानो में आकर चुपके से गुनगुनाती सी . कुछ ज्यादा ठंडी और शीतल ये सुबह की हवा, चंचल  वन -वन डोलती, फूल- फूल बैठती तितली सी  सुबह की ये ठंडी हवा. आँखों को भींचे हुए, हाथो को फैलाएं हुए  सीने में हिलकोरे लेती सी ये हवा. कभी इस पेड़ तो कभी उस डाली, कभी सरर सरर कभी मध्यम मध्यम. कभी कोई फूल कभी कोई सूखा सा पत्ता मुझ पर गिरती सी हवा और कभी बिन पूछे ही जुल्फों  से खेल जाती ये हवा हर क्षण, हर पल खुद में ही विशिस्ट महसूस कराती सी ये हवा,   श्वांश दर  श्वांश सीने में भरकर खुद को ही बहलाती ये हवा. एक बार फिर से, हां  हां फिर से और महसूस तो कर लू   सुबह की ठंडी हवा के ये झौके.                                                                                                                                  रेनू 

Mera dadu

मॉम्सप्रेस्सो इस दिलचस्प ब्लॉग पोस्ट को देखें "मेरा दादू भाग -1" by Renu Dhapola. Read Here: https://www.momspresso.com/parenting/mere-jivana-ki-pahali-guru-meri-man/article/mera-dadu-bhaga-1

आओ कुछ खुशियाँ लगा लें

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आओ कुछ खुशियाँ लगा लें, रंग बिरंगी खिलखिलाती सी बरबस मुस्कराने का न्योता  दे जाती  सी आँखों को ठंडक और दिल को ख़ुशी दे जाती सी आओ कुछ खुशियाँ लगा लें एक पौधा न सही एक फूल ही सही मिटटी या जमीं न सही एक गमला ही सही न मिले गमला भी अगर तो कोई पुराना एक डब्बा ही सही पर एक बीज , एक पौधा या एक फूल खुशियो  के लिए ही सही आओ कुछ खुशियाँ लगा लें 

मेरे जीवन की पहली गुरु-- मेरी माँ

कोई भी इंसान जैसा वो आज होता हैं उसमे उसका परिवेश, माहौल और उसके आस पास के लोगो का बहुत महत्व होता  हैं ; और  किसी भी चीज़ से ज्यादा महत्व एक इंसान की जिंदगी  में उसकी माँ का होता हैं जिससे उसका सर्वप्रथम परिचय होता हैं जब वो दुनिया में आता हैं, माँ - जो हर कदम पर बिना किसी शर्त  के ; बिना किसी लालच के आपका साथ देती हैं ; आपको सहो और गलत का फर्क बताती हैं; आपकी ख़ुशी में खुश होती हैं ; आपके  दुख में रातो को जगती  हैं; छुप छुपकर रोतीं है; पर आपको कहती हैं की बस रात को नींद नहीं आई ठीक से ! और यही फिकर करने वाली माँ एकदम से कड़क गुरु भी बन जाती हैं जब आप सिखने सिखाने की प्रक्रिया से गुजरने लगते हैं  क्यों सही कहा न मैंने?  हाहा हा बहुत कम बच्चे होते हैं जो माँ की मार नहीं खाते होंगें और मेरे बचपन में तो मेरी कुटाई जरा जम कर ही हुई हैं  और न केवल मेरी बल्कि मेरे भाइयो की भी ! हम तीन भाई बहन हैं एक बहन और दो भाई और सब पर मम्मी की प्रेम वर्षा या कुटान वर्षा समान रूप से हुई हैं बस मेरा छोटा भाई हमेशा अपनी चालाकी से बच जाता था और पीछे से हाथ पड़ती थी मैं या मेरा बड़ा भाई! मम्मी ने हम सभी भाई बहनो