भिटोली- मायके का आशीष

भिटोली- मायके का आशीष
 आज भिटोली आई हैं मेरी. उत्तराखंड में एक रिवाज़ हैं जिसमे चैत्र महीने में प्रत्येक परिवार अपनी शादीशुदा बेटी को पकवान, मिठाई, नए कपडे,  रुपये आदि देते हैं जिसे भिटोली कहा जाता हैं. जिनकी नयी नयी शादी हुई होती हैं उनकी पहली भिटोली चैत्र से पहले महीने फाल्गुन में ही दे दी जाती हैं. प्रत्येक शादीशुदा बेटी अपने माता-पिता या भाई बहन का इंतज़ार करती हैं कि कब उसके मायके वाले उससे मिलेंगें. इस महीने का उत्साह  उनमे देखते ही बनता हैं

ये जानने की उत्सुकता थी की आखिर भिटोली  क्यों मनाया जाने लगा इसके पीछे क्या कारण था या इसके बारे में  कोई प्रचलित कहानी थी तो इस बारे में पता किया तब मेरे सामने एक कहानी आई. कहानी मेरे मामाजी ने मुझे बताई थी जब वो अपनी बहन को भिटोली देने आये थे. कहानी उनके अनुसार कुछ ऐसी  थी- पुराने समय में गोपीचंद नाम के एक राजा हुए. कई वर्ष राज करने के बाद वो सांसारिक जीवन से ऊब गये और उन्होंने संन्यास ले लिया. संन्यास लेने के बाद वो जगह जगह भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करने लगे. कहा जाता हैं की जो संन्यास लेता हैं तो अपने संन्यास लेने के 12 वे साल में अपने मूल स्थान पर वापस आता  हैं और भिक्षा मांगता हैं. तो अपने 12 वें साल में राजा भी अपनी नगरी में वापस लौटा और जगह जगह जाकर भिक्षा मांगने लगा. राजा अपनी पूरी नगरी घूम गया पर कोई उसे पहचान ही नही पाया. कुछ आगे जाकर राजा की बहन का भी घर आया, राजा ने वहाँ  भी भिक्षा के लिए आवाज़ लगाईं, बहन ने जैसे ही राजा को देखा उसका हाथ पकड़ लिया  और बोली कि तुम तो मेरे भाई हो. बहन अपने भाई को पहचान गई. सन्यासी बोला की मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया पर आज वो भी मुझे पहचान नही पाई पर तुमने मुझे पहचान लिया. मैं तो एक सन्यासी हूँ मेरे पास कुछ नही हैं तुम्हे देने को बस भिक्षा में प्राप्त ये कुछ फल और चावल ही हैं.  ये तुम्हे देता हूँ और आज के बाद से इस महीने हर भाई अपनी बहन को भेंट देगा और मिलने आएगा.

 इसके अलावा एक बुजुर्ग आमा ने बताया था की पुराने समय में पक्की सड़के नही होती थी, आवागमन के साधन ज्यादा नही थे. अधिकतर सफ़र पैदल ही तय करना होता था जिसके कारण समय-समय पर कही भी जाना नही हो पाता था इसीलिए बेटी की शादी के बाद बेटी से मिलने में बहुत समय लग जाता था और साथ ही पूरी - पकवान भी विशेष अवसरों पर ही बनाया जाता था  इधर बेटी भी अपने मायकेवालो की याद में तडपती रहती थी. पुराने समय में शादी भी बहुत जल्दी  बचपने में ही कर दी जाती थी तो बेटी उदास हो जाती और बार बार अपने मायके को ही याद करती रहती. इसलिए  एक महिना निश्चित किया गया जिसमे मायके वाले अपनी बेटी से मिल भी आते और उसके लिए पकवान, मिठाई कपडे आदि ले जाते.  इसे भिटोली कहा जाता हैं और  पकवानों को कल्यो कहा जाता  हैं.  कुमाऊ में भिटोली में अलग अलग जगह  पर अलग अलग पकवान बनाये जाते हैं जैसे  कुछ जगह पूरी, पुए  आदि बनाये जाते हैं तो कुछ जगह पूरी और खजूरे बनाये जाते हैं  कुछ जगहों पर पूरी, सूजी या आटे  का हलवा, नमकीन या मीठी साईं(चावल के आटे  से बना ब्यंजन) आदि बनता हैं तो कुछ स्थानों पर  पूरी के साथ सिंगल (सूजी और दही या केले से बना ब्यंजन) आदि बनाया जाता हैं.  पूरी के साथ अरसा भी बनाया जाता हैं  (गेहू या चावल का आटा और गुड़ से बना ब्यंजन). चूँकि पुराने समय में इतनी मिठाईयां भी उपलब्ध नही हो पाती थी इसलिए घर पर ही खजूर, साईं, हलवा, सिंगल या अरसा जैसे मीठे पकवान बनाये जाते थे.
 भिटोली में, मायके से आये हुए पकवान और मिठाई आदि को लड़की अपने ससुराल में, आस-पड़ोस में सभी जगह बाँटती हैं. जितना ये कलेवा आप बाँट सको उतना ही अच्छा, क्योकि माना जाता हैं कि ऐसा करने से आपके मायके में खुशहाली आती हैं, धन दौलत, अनाज अच्छा होता हैं. ये रस्म कुछ कुछ ऐसी ही हैं जैसे जब कोई लड़की अपने मायके से  वापस लौटती हैं तो अपने मायके की देहरी पर अक्ष्यत(चावल) और फूल डालती हैं, आशय यही होता हैं  कि मेरे पीछे मेरा मायका भी भरा-पूरा,खुशहाल और सुखी रहे. भिटोली लाने वाले ब्यक्ति को भी वापस जाते वक्त टीका लगाया जाता हैं. टीका में एक नारियल (ग्वाव) लगाया जाता हैं.  कहा जाता हैं की भिटोली लाने  वाले ब्यक्ति का झोला भी खाली नही जाना चाहिए तो जाते वक्त फिर से पकवान या पूरी बनाई जाती हैं जिसे ताई दोराना भी  कहा जाता हैं. भिटोली पहाड़ की एक सुंदर परम्परा हैं जिसके कारण हर परिवार बेटी के विवाह के बाद भी उससे जुड़ा  रहता हैं. समयाभाव के कारण यदि कोई लम्बे समय तक अपनी बेटी या बहन से  नही मिल पाता हैं तो भी इस महीने में अवश्य ही  अपनी बेटी या बहन से मिलने जाता हैं. यही इस त्यौहार की सुन्दरता भी हैं. मायके वालो के आने की आशा एक बेटी को प्रसन्न रखती हैं.  आज के समय में इस अवसर को  रिवाज के रूप में मानते हुए बहन को मनी-आर्डर कर दिया जाता हैं. यदि समय मिले तो अपनी बेटी या बहन से जरुर मिल आइये. रुपये, पैसे, कपडे या पकवानों से कही  ज्यादा ख़ुशी एक बहन या बेटी को मायकेवालो के आने की होती हैं.बहूत जरुरी हैं भावनाओं को समझना,ताकि आपस में प्यार से मिलने वाला ये अवसर यूँ ही न खो जाये और रिश्तो की मिठास भी गुम न हो जाये.   परंपराओ और रिवाजों की असली पहचान ही प्यार  और खुशी  होती हैं  तो साथ में इस खुशी को मनाइये, एन्जॉय कीजिये.


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