संदेश

जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पहचान

घूमना बहुत अच्छा होता है ना केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि कई बार ये आपके सामने कुछ ऐसे विचार या बातें ले आता है कि आप सोचने लगते हो, आप स्वयं से विचार- विमर्श करने लगते हो। आज घूमते घूमते पार्क में बैठी तो कुछ महिलाओं की बातों पर ध्यान चला गया, हम क्या है? क्या करते हैं? खाली बैठे हैं, सब पूछते हैं क्या कर रही हो? सब बड़ी भरी बैठी थीं कि घर को सब कुछ देकर भी पति या बच्चे पूछते हैं कि तुम क्या हो? उनकी बातें सुनकर बुरा भी लगा और तरस भी आया। बुरा इसलिए कि उनके योगदान को कभी समझा नही गया और तरस इसलिए कि पहचान होने के लिए केवल जॉब करना ही जरूरी नही लगता मुझे।  घर आकर भी बहुत देर तक सोचती रही मैं। पहचान। मेरी पहचान कौन हूं मैं ? बहुत सारे प्रश्न होते है सबके मन में, और ये प्रश्न सबसे ज्यादा सुनती हूँ मैं लड़कियों, महिलाओ से कि कौन है वो, क्या है उनका अस्तित्व, क्या है उनकी पहचान। और महिलाओं में भी वो महिलाएं जो जॉब नही कर रहीं हैं। ध्यान रहे मैने जॉब कहा है जॉब- जिसके बदले इंसान सैलरी पाता है, पैसे कमाता है। मैंने काम नही कहा क्योकि काम की बात आएगी तो महिलाएं शायद नही यकीनन सबसे ज्यादा का

मेरी छुट्टियां

                            मेरी छुट्टियां   मेरे आने की एक खबर घर भर को कर देती कितना व्यस्त बिटिया आ रही है कुछ दिन फिर से जीने बचपन अपना मैं छोटी सी गुड़िया आज भी अपनी माँ की मै हूँ परी आज भी अपने पापा की। दुनिया के लिए मैं बड़ी, मैं समझदार पर नासमझ उनके लिए आज भी। मेरा हर कदम सही या गलत, उनको रहती फिक्र मेरी खुद भी ज्यादा मेरे आने की खबर भर से इतराती फिरती मेरी माँ, लाखो अरमान मन मे लिए, कि आये तो ये करू वो करू, काम ना कुछ भी करने दूँ और, बस सामने बिठा के रखूं। वो ये खायेगी कि ये, वो ये पहनेगी कि वो, हर बात में एक चाव, एक खुशी की झलक। मेरे आने की खबर सुन धीरे से मुस्कराते मेरे पापा, दूर से मेरा हाल पूछ कर खुश होते मेरे पापा ज्यादा कुछ ना बोलकर बहुत कुछ जताते मेरे पापा खुश खुश चेहरो से मुझे मिलते मेरे भैय्या, मेरी भाभी प्यार से लिपटता छोटा मेरा भाई हाथो से बैग खुद थाम लेता, कहता तू चल ऐसे ही।  छोटे छोटे से नटखट बच्चे। हर पल मेरे साथ लगे बुई आई है मेरी, कहते ये नन्हे। फिर से कुछ दिन बस कुछ दिन अपना बचपन जी लूँ फिर से नाचूँ हर धुन पर और बेबात कहकहे लगा ल