सुबह की ठंडी हवा



ठंडी हवा के ये झौके, जो मन को खिला सा देते हैं. भरकर श्वास अपनी, इन  हवाओ को कभी तो महसूस करना.
आँखों में उतरती सी ठंडक, सीने को सहलाती सी,
दोनों हाथो को बांधकर सीने से लिपटती सी और कभी कानो में आकर चुपके से गुनगुनाती सी .
कुछ ज्यादा ठंडी और शीतल ये सुबह की हवा, चंचल  वन -वन डोलती, फूल- फूल बैठती तितली सी  सुबह की ये ठंडी हवा.
आँखों को भींचे हुए, हाथो को फैलाएं हुए  सीने में हिलकोरे लेती सी ये हवा.
कभी इस पेड़ तो कभी उस डाली, कभी सरर सरर कभी मध्यम मध्यम.
कभी कोई फूल कभी कोई सूखा सा पत्ता मुझ पर गिरती सी हवा और कभी बिन पूछे ही जुल्फों  से खेल जाती ये हवा
हर क्षण, हर पल खुद में ही विशिस्ट महसूस कराती सी ये हवा,   श्वांश दर  श्वांश सीने में भरकर खुद को ही बहलाती ये हवा.

एक बार फिर से, हां  हां फिर से और महसूस तो कर लू   सुबह की ठंडी हवा के ये झौके.


                                                                                                                                 रेनू 

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