जीवनदाई जल –अब तो बचाओं
जीवनदाई जल –अब तो बचाओं
पानी - जीवन का आधार , पानी के कारण ही धरती पर
जीवन संभव हुआ हैं यदि यह पानी न होता तो शायद
धरती पर जीवन भी ना होता. अमूल्य कितना
जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती, जल ही जीवन हैं बार बार
सुनते हैं, मानते भी हैं पर समझना नही चाहते. लोग जल संरक्षण में नही बल्कि धन या धातु संरक्षण (सोना, चांदी ,हीरे,मोती) में
लगे हुए हैं . क्या करेंगें इन सबका, जब धरती पर पानी ही नही बचेगा. पानी
नही तो जीवन नही और जीवन ही नही हो तो ये सब भी तो ब्यर्थ ही हुआ ना. क्या कोई और विकल्प हैं जल का हमारे पास? नही
ना, तो फिर क्यों नही जाग जाते अब भी.जिस देश में कई नदिया बहती हो उस देश का ये
हाल हैं कि पीने को साफ़, स्वच्छ और शुद्ध पानी नसीब नही हैं. धरती पर उपलब्ध पूरे पानी में से केवल 1% या फिर
उससे भी थोडा कम का ही प्रयोग हम कर सकते हैं . कितनी नदिया, तालाब,पोखर हुआ करते
थे पहले, पानी से लबालब भरे हुए. हमारे पूर्वज जिन्हें हम बड़े गर्व से ओल्ड
जेनरेशन या पुरानी पीढ़ी के लोग कहते हैं हमसे कई गुना ज्यादा समझदार थे, पानी की
एक एक बूंद का महत्त्व जानते थे प्रत्येक गाँव में छोटे छोटे तालाब बने होते थे
जंगलो में ढलान वाली ज़गहो पर चाल-खाल बने होते थे साथ ही गाँवों में नौले,धारे या कुए जरुर होते थे
जिनकी नियमित अंतराल पर सामूहिक रूप से
साफ़-सफाई होती थी.
लगातार बहते
रहने वाले धारो के नजदीक एक छोटा तालाब या टेंकी जरुर बनाई जाती थी जिसमें धारे से बहता जल एकत्र होता था,
इसी तालाब से छोटी छोटी नालियाँ खेतो में भी पहुचाई जाती थी जिनसे सिंचाई का काम
लिया जाता था.जानवरों के लिए जंगल में ही पोखर या तालाब आदि बनाये जाते थे जहाँ
जानवर अपनी प्यास भी बुझाते, नहाते साथ ही
जानवरों के खुरो(पैरों) से वो तालाब या
पोखर गहरे भी होते जाते थे और दलदली भी.
ये सब जल तंत्र के लिए बहुत ही फायदेमंद होता था. वर्षाकाल में इनमे पानी इकठ्ठा
होता जो किसी और स्रोत के लिए रिचार्ज की
तरह कार्य करता था. आज हैं क्या ये सब? और
अगर हैं भी तो किस हाल में हैं ?पुराने समय में बरतन आदि धोने के लिए स्थान(पहाड़ी
भाषा में-पनाड ) खेतो की मुंडेर पर, आँगन
में ही बनाए जाते थे जिनसे नालियों के द्वारा सारा पानी खेतो में चला जाता था.
आज बरतन किचन में ही सिंक में धोये जाते है और उसका पानी सीधे नालियों द्वारा गटर में पहुचता हैं. और गटर को डाल दिया जाता
हैं किसी नदी या नाले में. एक तो नदी या
नाला भी दूषित हुआ साथ ही पानी का पुनः उपयोग या रि-यूज़ भी हुआ ही नही . नुकसान ही नुकसान. पहले आँगन मिटटी के या फिर पत्थरों से बनाए जाते थे जिनसे रिसकर बरसात का पानी
भूमि में चला जाता था, जो भूमिगत जल स्तर
बढाने का काम करता था आज सब सिमेंटेड हैं
पानी भूमि मे जायेगा कैसे. पानी की कमी
होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण तो हम स्वयं ही हैं,अपनी दिनचर्या में ही हम कितना
पानी बरबाद कर देते हैं ये हम खुद ही नही जान पाते. ब्रश करते करते, हाथ-मुहं धोते
समय, नहाते समय, शौचालय में फ्लश में, या बर्तन कपडे आदि धोने में कितनी बार हम नल
खुला रख देते हैं जो सरासर पानी की बर्बादी हैं जब आज नही बचाया तो कल कहाँ से
पाओगें. नौले,धारे पोखर या तालाब तो सूख चुके हैं या सूखने की कगार पर हैं .
तालाब
और पोखरों को तो हमने पाटकर अपने बड़े बड़े भवन बना लिए, कुए और नौलो का इस्तेमाल
करना हमने बंद कर दिया. साथ ही नदियों का जल भी कम होता जा रहा हैं क्योंकि नदियों
में आने वाले जल के स्रोत ही कम होने लगे हैं और अधितकर रिचार्ज पिट्स भी पाट दिए गये हैं , अपने लालच के कारण हमने जल
स्रोतों का रखरखाव ही नही किया तो नदी में
पानी आएगा कहाँ से? जलस्तर जिन जल स्रोतों के कारण बढ़ सकता था वो तो हमने स्वयं नष्ट कर दिए.
जिन स्थानों पर पारंपरिक जलस्रोतो का रखरखाव
होता हैं वहाँ अभी भी स्थिति सही हैं.
आपने देखा होगा आजकल नौले,कुए या तालाबों में तेल की एक परत सी जमी दिखाई
देती हैं, पहले नौले या कुए से लगातार पानी निकला जाता था अब सब जगह वाटर सप्लाई
सिस्टम के कारण नल लगे हैं तो नौले या तालाबो से पानी का प्रयोग नही करते जिसके
कारण पानी ख़राब होने लगता हैं या सड़ने लगता हैं.
जी हाँ! बात अजीब सी लगेगी पर यदि
पानी कई समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रहे तो वह पानी भी ख़राब होने लगता हैं, इसी
कारण इन जल स्रोतों के उपर तेल की परत सी दिखाई देने लगती हैं. पहले लगातार नौलो
या कुए से पानी निकला जाता था और कुछ समय बाद ही नौला फिर से लबालब भर जाता
था. नौले तालाब या धारों के आस-पास पेड़
पोधे लगाये जाते थे जो उस स्थान पर नमी बनाये रखते थे. साथ ही छोटे छोटे मंदिर भी
बनाए जाते थे जिससे की श्रध्दा वश कोई भी जल स्रोतों को दूषित नही करता था. मैंने
खुद अपने बचपन में नौलो से पानी भरा हैं.
पानी निकालने के कुछ समय बाद ही नौले फिर से भर जाते थे. इन नौले की एक खास बात और थी की गर्मी में इनका
पानी ठंडा और जाड़ो में हल्का गुनगुना सा होता था. . कभी आपने जानने की कोशिश करी
हैं अपने गाँव के स्रोत के विषय में की वो पुराना नौला कैसा हैं या वो धारा अब भी हैं क्या अब भी तालाबो में
उतना ही पानी हैं? कही सूख तो नही गये, देखा हैं आपने? एक बार देखिएगा जरुर.
आज जरुरत हैं पानी को
बचाने की, जल सरक्षण करने की, बरना भविष्य अति भयानक होगा. छोटे-छोटे प्रयास भी
अगर करें तो कुछ तो रिजल्ट निकलेगा ही.
पुराने जल स्रोतो की सफाई और रख-रखाव करना होगा. देनिक जीवन में भी पानी
बचाना होगा. पानी का री-यूज़ भी करना होगा
जैसे बर्तन आदि धुलने के लिए किसी बाल्टी
का प्रयोग कर बचे पानी को पौधो में डालना, कपडे आदि धोने के पानी से रास्तो
या गलियों में छिडकाव. या इन सब कामो में लगे जल को पाइप द्वारा खेतो या पौधो तक
पहुचाना जिससे सिचाई भी हो सके. इन सब कामो में पानी के पुनः उपयोग से हम साफ़ पीने
के पानी को बचा सकते हैं. अब गर्मियां आ
रही है फिर से पानी को लेकर हल्ला होगा, कही पानी की घोर कमी भी होगी, हम सभी को
पानी की बचत करनी हैं साथ ही जब बर्षा
होगी तो जल संचय पर भी ध्यान देना होगा. साथ ही पौधारोपण भी करना होगा क्योकि पेड़ पोधे
वर्षा में सहायक होते हैं. लोग अपने घरो में रेन हार्वेस्टिंग टैंक भी बना सकते
हैं जब अभी बचत होगी तभी आगे भी पानी उपलब्ध होगा और इसके प्रयास अभी से ही करने
होंगें. जिससे कि लोगो को पीने के लिए साफ़ और शुद्ध पानी प्राप्त हो सके और साथ ही सभी लोग
पानी को बचाने को भी एकजुट हो, पानी का संरक्षण
किया जा सके, ताकि भविष्य में भी साफ़ और शुद्ध पानी मिल सके. सबसे बड़ी बात हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए नदियाँ
, नाले केवल भूगोल में पढ़ने वाला बिषय बन कर ना रह जाये, या वो यह ना पूछें की गधेरे, ताल, पोखर, नौले, कुँए क्या होते थे. आज हम पूछते हैं की सरस्वती नदी
कहाँ बहती थी, कैसी थी. कही आगे की पीढ़ी
भी यही प्रश्न ना दोहराए की कावेरी या गंगा नदी कहाँ बहती थी. ये तो पुरे देश की
बात हैं अपने उत्तराखंड में ही कई नदियों का जल बहुत कम हो गया हैं और कई छोटी
छोटी नदियाँ तो सुख भी गई हैं. नौले धारे की तो
गिनती ही नही हैं. इसलिए भविष्य को बचाने के लिए , पूरी मानव जाति ,
जीव-जंतु जगत को बचाने के लिए छोटा सा ही
सही पर जल सरक्षण का प्रयास जरुर करियेगा. धन्यवाद .
बहुत खूब , सही और प्रेरणादायी
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंGood information
जवाब देंहटाएंजल हम बना नही सकते लेकिन बचा जरूर सकते हैं,save water
जवाब देंहटाएंbilkul sahi baat. so save water
हटाएंबहुत उपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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